अंतर्मन

शायरी करना तो शायरों का काम है , हम तो बस यूंही अरमां बयां करते हैं !!

कुछ इस तरह से तुम मेरी ज़िंदगी में आये..

कुछ इस तरह से तुम
मेरी ज़िंदगी में आये

बिखरी हुई पंखुड़ियों से जैसे 
दिया हो फिर से फूल खिलाये
कुछ इस तरह से तुम
मेरी ज़िंदगी में आये


नादानियों को मेरी 
तुमने सदा दिया भुलाये 
कुछ इस तरह से तुम
मेरी ज़िंदगी में आये


कितने ही पाठ तुमने 

ज़िंदगी के हमें पढ़ाये 
कुछ इस तरह से तुम
मेरी ज़िंदगी में आये


दबा के अरमानों को अपने 
हमारे लिए मुस्कुराये 
कुछ इस तरह से तुम
मेरी ज़िंदगी में आये


चाहा तो कितना कुछ 
ख़ास न हम कर पाए 
कुछ इस तरह से तुम
मेरी ज़िंदगी में आये


नव जीवन, नव दीप हमारा 
तुमने दिया जलाये 
कुछ इस तरह से तुम
मेरी ज़िंदगी में आये !!



सोच

अधूरे शब्द अधूरी सोच 
पूरे होने का उनको 
कबसे है इंतज़ार , 
मन की गहराईयों में  
दबे हैं कहीं  
कितने तनहा बेबस लाचार ,
कब होंगे पूरे 
वो ख्यालों के मकां अधूरे 
क्या होगा उनका 
जानने को बेकरार ,
जीवन की रफ़्तार में 
दूसरे के लिए वक़्त नहीं 
तब इस सोच के बारे में 
सोचकर क्यूँ वक़्त करें बेकार ,
इसी सोच के कारण शायद 
अभी तक है अधूरी 
ये सोच ,
ज़रा सोचो और करो विचार !!

शैल 

अक्टूबर' १५ 

लोग सच कहते हैं


लोग सच कहते हैं 
हमेशा आगे बढ़ते जाना है  

भूत के नतीजे भविष्य में 
नहीं बताये जाते हैं 


लोग सच कहते हैं  
ज़िंदगी के साथ ज़िंदगी और 
ज़िंदगी के मायने भी बदल जाते हैं 


लोग सच कहते हैं 
किसी की उम्मीद , 
किसी के ख़्वाब ,
कहीं इंसां बदल जाते हैं 


लोग सच कहते हैं 
जिस विश्वास जोड़ने में सालों लगे 
तोड़ने में पल भी न लगाते हैं 


लोग सच कहते हैं 
ठोकर खाके ही लोग संभलते हैं 
संभल गए तो ठीक, 

वरना लोग मर भी जाते हैं 


लोग सच कहते हैं 
जीवन के चक्र में तो चलना ही पड़ता है 
तुम्हारे रुकने से ,

लोग रुक थोड़े ही जाते हैं 


लोग सच कहते हैं 
सब कुछ तुम्हारे मुताबिक़ नहीं होता 
कोशिश करो ,
कोशिश करके हार को भी जीत में बदल पाते हैं 


लोग सच कहते हैं 
ज़िंदगी के अपने उसूल हैं 
किसी के उसूलों पे दुनिया नहीं चलती 

वक़्त के साथ, कितनों की नीयत 
कितनों के उसूल बदल जाते हैं 


लोग सच कहते हैं 
घाव वक़्त के साथ भर ही जाते हैं 
क्या हुआ जो निशाँ छोड़ जाते हैं 
दर्द भले ही न करते हैं 
यादें तो ताज़ा कर ही जाते हैं 


लोग सच कहते हैं 
पर सब कुछ नहीं कहते 
जिन सवालों का ज़वाब पास नहीं 
उनको भगवान भरोसे छोड़ जाते हैं 



शैल 
दिसम्बर' १७ 

बदलाव

जीवन के हर मोड़ पे,
कितने सपने हैं खड़े
उन सपनों को करने,
पूरी शिद्दत से हम पड़े
कुछ हों पूरे , कुछ अधूरे
कुछ थे छोटे , कुछ बड़े
कितने सपने , उन सपनों में
मैं अपनों से, हैं परे
हम चाहें , जो भी चाहें
सब कुछ मिले , खड़े खड़े
सब चाहें होना, पर उस होने पे
हमें करना, न कुछ पड़े
सब अच्छा , सब बदला हो
बस हमें न कभी बदलना पड़े।
कब सुधरेंगे हालात
जहाँ आगे बढ़ने के लिए,
किसी को पीछे ना करना पड़े
सब रहे मिलके और
किसी को किसी से ना झगड़ना पड़े
हम औरों के बारे में भी सोचें,
सिर्फ़ तभी नहीं, जब काम पड़े
काश वो भी एक दिन आये
जब अच्छा होने की आस छोड़
अच्छा करने को , हम खुद भिड़े
सोच बदले, परिस्थिति को जाने

पर उनको बदलने के लिए,
कभी सच को ना बदलना पड़े
नज़रिया समाज का यूँ बदले
पैसों से नहीं , कर्मों से 

सफ़लता की पहचान बने
मिलजुल कर करे सब प्रयास ऐसे

मैं बढूं हम बढ़ें देश बढे

-  शैल २०१६