अंतर्मन

शायरी करना तो शायरों का काम है , हम तो बस यूंही अरमां बयां करते हैं !!

पानी की बूँद

बारिषों में गिरकर 
इधर उधर बिखर कर 
जहाँ ढाल थी बह गयी 

कभी बादलों में छुपकर 
धूप में निखर कर
सतरंगी इंद्रधनुष बन गयी 

कभी पत्तों में बैठे 
हवाओं में घुलके 
इक ठंडा एहसास हो गयी  

फिर शून्य से लुढ़क कर
पहाड़ों में जम कर 
सुन्दर एक सफ़ेद चादर हो गयी 

कभी माथे से होकर 
गर्मी और मेहनत से जुड़ कर 
नमकीन पसीना हो गयी 

कभी प्यासे की प्यास 
उसके जीने की आस 
जीवनदायनी अमृत हो गयी 

कभी आपस में मिल जुल कर 
कुआँ, तालाब, झील, नदिया
आखिर में सागर हो गयी


कभी शुद्धि का साधन 
कहीं पूजा, कभी आचमन 
तुलसी में मिलके प्रसाद हो गयी 

कभी दिल के अरमान
ज़ज़्बातों की कहानी 
आंखों से बेहता दरिया हो गयी  

कभी दवा, कभी 
जाम में मिल कर 
दर्द-ए-दिल का इलाज हो गयी

कभी नीर, जल, वारि 
कहीं ओस, भाप, शबनम 
कभी पानी की बूँद हो गयी 



- शैल 
अप्रैल, २०१८