अंतर्मन

शायरी करना तो शायरों का काम है , हम तो बस यूंही अरमां बयां करते हैं !!

Work Life Balance

मन का महल
भावनाओं की सजावट,
उसमे मिलाओ
चाहतों की मिलावट,
दिमाग का किला
विचारों का सिलसिला,
समय के साथ
कुछ ज्ञान है मिला,
दुनिया की दौड़
आगे बढ़ने की होड़,
काम के पीछे
परिवार को छोड़,
कहाँ से चले थे
कहाँ आ गए,
आपस का स्नेह
सबका साथ गवां गए,
ऐसा होना
सोच के डरता है,
हुआ नहीं, बस
युहीं संभलता है,
काम और परिवार
दोनों हैं ज़रूरी,
इंसान की कुछ
अपनी है मजबूरी,
वक़्त के साथ
बदलना तो पड़ेगा,
पर इन बातों को
हल करना ही पड़ेगा ...


शैल 
2012 

पहचान

एक रात,
घने अँधेरे में,
मन की सूनसान 
गलियों में,
डोल रहा था,
अपने विचारों की
पोटली
टटोल रहा था,
बिखरी यादों की
तस्वीरें,
जोड़ रहा था,
मैंने पाया..
पहले जो कम था,
अब वो ज्यादा हो गया,
पल पल
ज़िन्दगी बदलना,
कायदा हो गया ...
कहाँ से चले थे,
और
कहाँ आ गए ..
समय चलता गया
और, हम बदलते गए..
लोग मिले,
बिछड़ते गए..
लेकिन लगता है,
कुछ बातें
नयी,
और, कुछ अब भी
वही हैं ...
जो जैसी थी,
वही की वही है..
और,
शायद वो ही
कुछ बातें,
मेरी पहचान सही है ..

शैल
अगस्त '12

भ्रष्टाचार

व्यवस्थाओं की हार,
नपुंसकों की सरकार,
कब तक सहेंगे हम,
इस देश में भ्रष्टाचार.

महंगाई की मार,
प्रजातंत्र पर प्रहार,
कब तक सहेंगे हम,
इस देश में भ्रष्टाचार.

करोड़ों के घोटाले,
गरीबी की हाहाकार.
कब तक सहेंगे हम,
इस देश में भ्रष्टाचार.

आतंक का साया,
डर का प्रचार,
कब तक सहेंगे हम,
इस देश में भ्रष्टाचार.

घूसखोरी की दुनिया,
सब नियम हैं बेकार,
कब तक सहेंगे हम,
इस देश में भ्रष्टाचार.

पूंजीवादियों का आधिपत्य,
अनसुनी, जनता की ललकार,
कब तक सहेंगे हम,
इस देश में भ्रष्टाचार.

फूट-वाद की राज-निति .
और फायदा उठाते बस दो-चार.
कब तक सहेंगे हम,
इस देश में भ्रष्टाचार.

वो स्वर्दिम भारत का
सपना, कौन करेगा साकार,
सार्थक प्रयासों से ही रुकेगा,
अब, इस देश में भ्रष्टाचार....

शैल
2012

चल.. चला ..चल..

दीवार पर लगी हुई
वो घड़ी,
हर पल,
ये एहसास दिलाती है ...
कोई चले, न चले,
वक़्त कभी,
किसी के लिए रुकता नहीं...
खुशियाँ,
तुझे ही तलाश करनी पड़ती हैं,
कोई हँसे , न हँसे ,
गर पल
वो चला जाये,
वापस आ सकता नहीं...
इश्क में तू,
जान देने की कोशिश न करना,
जान जाने का
वक़्त, तय तू करता नहीं...
जी, सब को ले संग,
जी भर के जी ले..
गम तो
छड भर का है,
तू कोई ग़मज़दा नहीं ...
मुश्किलों में,
लगा रह,
खुद के मदद खुद कर,
कायरों की
मदद,
खुदा भी करता नहीं ....
अपने गुनाहों का,
तू कर ले प्राश्चित,
पछताने से,
बाद में कुछ होता नहीं...
कर्म किये जा,
और फल की चिंता मत कर,
फल के पकने की
उम्र, तय तू करता नहीं..
जो गया,
सो गया, तू आगे की सोच,
जाने वाले को,
रोक कोई सकता नहीं....
और जो चला गया,
वापस आ सकता नहीं..
दीवार पर,
लगी हुई घड़ी,
हर पल
ये याद दिलाती है,
चल.. चला ..चल..
रुक तू सकता नहीं...

शैल - जुलाई ' 12

देखा है ...

वक़्त-ए-ज़रुरत.. जिंदगियों को बदलते देखा है
ग़म को ख़ुशी और ख़ुशी को ग़म .. बनते देखा है.
पाना - खोना तो सब नसीब की बात है..
दुनिया में खो कर भी, लोगों को हसंते देखा है..
लोग आते हैं ज़िन्दगी में, और, चले जाते हैं .
कुछ लोगों को, यादों में,रोज़ तड़पते देखा है..
ग़म-ए-जुदाई में लोग, पागल से हो जाते हैं..
उन्ही लोगों को हमने, गिरते, संभलते देखा है..
रंज-ओ-गम में लोग, न होते हुए भी बुरे बन जाते हैं ..
वैसा क्यूँ नहीं होता, जैसा ख्वाबों में होते देखा है ..
दुनिया की रिवायत में हम, खो से जाते हैं
हमने सबसे हटके, लोगों को आगे बढ़ते देखा है ..