अंतर्मन

शायरी करना तो शायरों का काम है , हम तो बस यूंही अरमां बयां करते हैं !!

Wastav Me

आज का दिन
मैं तनहा ,
सोचता हूँ !
दुनिया है बेखबर
खुद से दूर, कहीं अँधेरे मैं
अपने आपको
अपने मैं ही तलाशते.
कभी राम कभी
रहीम हैं पुकारते
और उसी के नाम पर,
लड़ते-झगड़ते
अपने को सच्चा इन्सान बताते.
जब सीता को भी
अपने सतीत्व की अग्नि परीक्षा
देनी पड़ी, तो क्या
मैं और आप
इस सच्ची की
परीक्षा में जल न जायेंगे?
गीता में कृष्ण ने
जो कर्म का पाठ पढाया,
हमने कर्म को क्या,
कृष्ण को ही भुलाया.
आज संसार में
कोई भी सुखी नहीं
दीखता मुझको.
क्या वास्तव में,
सुख मरीचिका है?
सभी दुःख में
इतने हैं दुखी,
की कला-साया
बढ़ रहा है.
समय चलता है
हम कहाँ से कहाँ तक
अस गए,
क्या वास्तव में
हमने खुद को पा लिया?
जो गरीबी, बीमारी,
लाचारी, बेबसी और
समय के मारे हैं
उनसे पूछो क्या पाया तुमने
कहा गुड खाकर,
पानी पीने से
अच्छा और क्या जीना है.
जब मैं शायद
स्वयं को स्वयं में
स्वयं ही ढूंढ लूँगा
तब शायद अपने आपकी
तलाश ख़त्म होगी.
जब मैं पीछे देखूँगा
और यदि मेरा कला-साया
छोटा हो तो
वास्तव में
मैं स्वयं को पा लूँगा !!



- शैल
२००० - २००१

Raaz Dil Ka


Dil me hai, Dimag me hai, magar kuchh bola nahin.
Eisa nahin ki socha nahin, Bas raaz dil ka khola nahin.

Kitani siddat se ummeed lagaye beitha tha yahan pe,
Na-ummeedagee ke pehale, shayad wo aa jaye kahin.

Ham to awaara bas yoonhin ghooma karte hain,
Ummeed jahan par lagati, rukate hain, ghar ham banaye wahin.

Khamosh nigaahein samandar ko samete si lagati hain,
Roke se tham bhi paya hai kabhi, koi sagar toofan me kahin.

Mere dil ka jwalamukhi mujhko hi kahin na jhulsa de,
Mera kya hai, darta hoon, mere apne bhi na jal jayein kahin.

Kya kahoon, Kisase kahoon, Kitana kahoon, bas yehi Trishna rehati hai
Ye dua hai lekin, kuchh kehane ko, Eise mauke pe, Koi to mil jaye kahin !!

- Shail
01022010