अंतर्मन

शायरी करना तो शायरों का काम है , हम तो बस यूंही अरमां बयां करते हैं !!

कश-म-कश


किसपे चलाऊं
कैसे चलाऊं, किसी पे
चलता नहीं मेरा बस
कश-म-कश

कुछ भी करूँ
कैसे भी करूँ, लगता है
गया हूँ मैं फस
कश-म-कश

क्या होना था
कब क्यूँ है हुआ
बोल रही है , मेरी
हर एक नस-नस
कश-म-कश

कोई सुनाये
कोई समझ न पाए,
होती ज़िन्दगी में
बड़ी असमंजस
कश-म-कश

दुनिया के मायाजाल में
क्या खोया, क्या पाया
इसी उलझन में,
मैं गया हूँ फस
कश-म-कश

मर हम गए
मरहम ढूँढते,
घाव-ए-ज़िन्दगी में
भर गया है पस
कश-म-कश

पाया है कुछ
पाना है सब कुछ,
लालसा का शिकंजा
अब गया है कस
कश-म-कश

- शैल 
जून '१३