अंतर्मन

शायरी करना तो शायरों का काम है , हम तो बस यूंही अरमां बयां करते हैं !!

इंतज़ार...

कब से उस वक्त के 
इंतज़ार में 
साँस थमी सी है।
चाहतों के इकरार
में, बेकरार 
उम्मीद लगी सी है।
दीदार-ए-हुस्न-ए-यार 
की आग 
दिल में लगी सी है। 
क्या गलत, सही 
अन्तर्मन में 
अब ठनी सी है। 
भावनाओं के सागर में 
पाने की उसे 
लहर उठी सी है। 
तेरी हाँ सुनने को 
अब, मेरी 
ज़िन्दगी रुकी सी है। 

- शैल 
२०१३ 

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