वक़्त-ए-ज़रुरत.. जिंदगियों को बदलते देखा है
ग़म को ख़ुशी और ख़ुशी को ग़म .. बनते देखा है.
पाना - खोना तो सब नसीब की बात है..
दुनिया में खो कर भी, लोगों को हसंते देखा है..
लोग आते हैं ज़िन्दगी में, और, चले जाते हैं .
कुछ लोगों को, यादों में,रोज़ तड़पते देखा है..
ग़म-ए-जुदाई में लोग, पागल से हो जाते हैं..
उन्ही लोगों को हमने, गिरते, संभलते देखा है..
रंज-ओ-गम में लोग, न होते हुए भी बुरे बन जाते हैं ..
वैसा क्यूँ नहीं होता, जैसा ख्वाबों में होते देखा है ..
दुनिया की रिवायत में हम, खो से जाते हैं
हमने सबसे हटके, लोगों को आगे बढ़ते देखा है ..