आज का दिन
मैं तनहा ,
सोचता हूँ !
यदि देश आज होता,
सोने की चिड़िया !
न होती बेईमानी
न भ्रष्टाचार, न आतंकवाद
न राजनीतिज्ञों के हाथों की,
राजनीती बन जाती गुडिया,
यदि देश आज होता,
सोने की चिड़िया !
यहाँ पर होते सब 'राज'
न होता कोई 'गौरी' आज.
न आज जवानी में,
है वो जोश
क्योंकि नशे में आज,
वो हैं बेहोश.
जवानी है दीवानी
और नस्ल हो गयी है बुढिया.
यदि देश आज होता,
सोने की चिड़िया !
आज हम हो गए हैं,
खुद के गुलाम.
न पहले सा प्यार,
न दूसरों पर ऐतबार.
क्या आज हमारी सचमुच,
टूट चुकी हैं बेड़ियाँ.
यदि देश आज होता,
सोने की चिड़िया !
पहले न होते थे,
घर मैं ताले
आज तो हर दिल के,
दरवाजे बंद हैं.
कुछ लोगों ने बाटा है
हमारे दिलों का, वरना
'हम साथ-साथ हैं'
चाहे गुजराती हो या उड़िया.
यदि देश आज होता,
सोने की चिड़िया !
न बटता हमारा देश
न होती ये दुश्मनी.
हम रहते प्यार से
न होता डर किसी का
चाहे रुसी हो या अमरिकिया.
यदि देश आज होता,
सोने की चिड़िया !
न होता अंत
'सत्य-अहिंसा' का
जब मिलकर रहते,
सब बहिन और भइया
न जमीन घर की बटती
और न देनी पड़ती अधिया.
यदि देश आज होता,
सोने की चिड़िया !
चलो फिर बनायें देश को,
वही सोने की चिड़िया
जहाँ दिल जुड़े हों दिल से
और लगे की प्रेम की हथकड़ियाँ.
देश फिर बनेगा आज,
वही सोने की चिड़िया !!!
- शैल
२००० - २००१