अंतर्मन

शायरी करना तो शायरों का काम है , हम तो बस यूंही अरमां बयां करते हैं !!

तनहाई ..

दो चार पल
ये तनहाई के,
काटे, कटे न
लम्हे जुदाई के.. 


याद तेरी अब
इसक़दर आती है,
माँगता हूँ तुझको ही
हर सजदे में खुदाई के ..


तन्हा रातें अब 
कटती नहीं हैं ,
काटनी हो ठंड
जैसे बिन रजाई के..


तेरे बिन मैं
हूँ अधूरा, 
जैसे शादी 
बिन सगाई के..


याद तुझे भी
आती होगी ,
अब साथ हर आह के 
साथ हर तन्हाई के..


माना कि दूर हैं ,
मिल जाएंगे,
बीत जाएंगे
पल ये तन्हाई के ..


शैल १२'१३ 

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