एक रात,
घने अँधेरे में,
मन की सूनसान
गलियों में,
डोल रहा था,
अपने विचारों की
पोटली
टटोल रहा था,
बिखरी यादों की
तस्वीरें,
जोड़ रहा था,
मैंने पाया..
पहले जो कम था,
अब वो ज्यादा हो गया,
पल पल
ज़िन्दगी बदलना,
कायदा हो गया ...
कहाँ से चले थे,
और
कहाँ आ गए ..
समय चलता गया
और, हम बदलते गए..
लोग मिले,
बिछड़ते गए..
लेकिन लगता है,
कुछ बातें
नयी,
और, कुछ अब भी
वही हैं ...
जो जैसी थी,
वही की वही है..
और,
शायद वो ही
कुछ बातें,
मेरी पहचान सही है ..
शैल
अगस्त '12
घने अँधेरे में,
मन की सूनसान
गलियों में,
डोल रहा था,
अपने विचारों की
पोटली
टटोल रहा था,
बिखरी यादों की
तस्वीरें,
जोड़ रहा था,
मैंने पाया..
पहले जो कम था,
अब वो ज्यादा हो गया,
पल पल
ज़िन्दगी बदलना,
कायदा हो गया ...
कहाँ से चले थे,
और
कहाँ आ गए ..
समय चलता गया
और, हम बदलते गए..
लोग मिले,
बिछड़ते गए..
लेकिन लगता है,
कुछ बातें
नयी,
और, कुछ अब भी
वही हैं ...
जो जैसी थी,
वही की वही है..
और,
शायद वो ही
कुछ बातें,
मेरी पहचान सही है ..
शैल
अगस्त '12
3 टिप्पणियाँ:
Kavivar Shail Good good likha hai... :)
... few lines in continuation
Kuchh baaton ka badal jaana jaruri hota hai,
Vahin kuchh ka badalna majboori hota hai...
Sooraj bhi kab ek saa raha hai aasman me,
Kabhi laal, kabhi peela, kabhi sindoori hota hai. :)
one more... :)
Chaand bhi uska sagaa nikla,
Kabhi aadhi to kabhi roti-poori hota hai.
Sahi hai Vivek bhai.. mast ekdum :)
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