मुरीद = कमिटेड , शरगोशी = कानाफूसी , शिकायत ; पशेमां = पश्चाताप
सौदाई = पागलपन , बे-इख़्तियारी = असहाय , बे-अदबी = अशिष्ट , तिशनगी = लालसा
उक़ूबत = सजा , यातना ; अश्किया = कठोर हृदय , इख़्लास = सच्चाई , शिकवायी = शिकायत ,
इज़्तिराब = बेचैनी , ज़ाबित = नियम का पालन करने वाला , ज़ुस्तज़ु = खोज
सब कुछ तो ठीक था
हम भी ख़ुश थे, तुम भी ख़ुश थे
क्यूँ ऐसा बेगानापन
फिर क्यूँ है ये बेरुख़ी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
इज़हार ही तो किया था
इक़रार की उम्मीद में
कोई ज़बरदस्ती तो की नहीं
फिर क्यूँ है ये रुसवाई
आख़िर ऐसा हुआ क्या
कुछ सपने ही तो देखे थे
कुछ अरमां ही जगाये थे
तेरी बातों के मुरीद
चंद लम्हे ही चाहे
फिर क्यूँ है ये तनहाई
आख़िर ऐसा हुआ क्या
माना सब कुछ सही ना था
पर क्या हर बात ग़लत थी
अपने कुछ पल और
पल भर की ख़ुशी ही मांगी थी
फिर ये सज़ा, क्यूँ ये है जुदाई
आख़िर ऐसा हुआ क्या
जैसे हम रहते थे बेक़रार
तुम भी तो करते थे इंतेज़ार
क्या हुई कोई शरगोशी
फिर क्यूँ दे गए सौदाई
आख़िर ऐसा हुआ क्या
कभी छुपाया कुछ नहीं
जो पूछा बताया तो था
तो आज क्यूँ ऐसे डरते हो
फिर क्यूँ ये बे-इख़्तियारी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
ग़र हुई बे-अदबी है
पशेमां हैं हम
कोई गुस्ताख़ी हो बता दो
फिर क्यूँ ऐसी तिशनगी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
हर उक़ूबत मंज़ूर है हमें
पर ऐसे अश्किया न बनो
इख़्लास थी बातों में हमारी
फिर क्यूँ ये शिकवायी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
इस इज़्तिराब की दवा तो दे दो
ना ऐसे ज़ाबित बनो
थोड़ा वक़्त ही तो माँगा था
फिर क्यूँ ज़ुस्तज़ु की नौबत आयी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
- शैल
अप्रैल' २०१८
सौदाई = पागलपन , बे-इख़्तियारी = असहाय , बे-अदबी = अशिष्ट , तिशनगी = लालसा
उक़ूबत = सजा , यातना ; अश्किया = कठोर हृदय , इख़्लास = सच्चाई , शिकवायी = शिकायत ,
इज़्तिराब = बेचैनी , ज़ाबित = नियम का पालन करने वाला , ज़ुस्तज़ु = खोज
सब कुछ तो ठीक था
हम भी ख़ुश थे, तुम भी ख़ुश थे
क्यूँ ऐसा बेगानापन
फिर क्यूँ है ये बेरुख़ी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
इज़हार ही तो किया था
इक़रार की उम्मीद में
कोई ज़बरदस्ती तो की नहीं
फिर क्यूँ है ये रुसवाई
आख़िर ऐसा हुआ क्या
कुछ सपने ही तो देखे थे
कुछ अरमां ही जगाये थे
तेरी बातों के मुरीद
चंद लम्हे ही चाहे
फिर क्यूँ है ये तनहाई
आख़िर ऐसा हुआ क्या
माना सब कुछ सही ना था
पर क्या हर बात ग़लत थी
अपने कुछ पल और
पल भर की ख़ुशी ही मांगी थी
फिर ये सज़ा, क्यूँ ये है जुदाई
आख़िर ऐसा हुआ क्या
जैसे हम रहते थे बेक़रार
तुम भी तो करते थे इंतेज़ार
क्या हुई कोई शरगोशी
फिर क्यूँ दे गए सौदाई
आख़िर ऐसा हुआ क्या
कभी छुपाया कुछ नहीं
जो पूछा बताया तो था
तो आज क्यूँ ऐसे डरते हो
फिर क्यूँ ये बे-इख़्तियारी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
ग़र हुई बे-अदबी है
पशेमां हैं हम
कोई गुस्ताख़ी हो बता दो
फिर क्यूँ ऐसी तिशनगी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
हर उक़ूबत मंज़ूर है हमें
पर ऐसे अश्किया न बनो
इख़्लास थी बातों में हमारी
फिर क्यूँ ये शिकवायी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
इस इज़्तिराब की दवा तो दे दो
ना ऐसे ज़ाबित बनो
थोड़ा वक़्त ही तो माँगा था
फिर क्यूँ ज़ुस्तज़ु की नौबत आयी
आख़िर ऐसा हुआ क्या
- शैल
अप्रैल' २०१८
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