अंतर्मन

शायरी करना तो शायरों का काम है , हम तो बस यूंही अरमां बयां करते हैं !!

चल.. चला ..चल..

दीवार पर लगी हुई
वो घड़ी,
हर पल,
ये एहसास दिलाती है ...
कोई चले, न चले,
वक़्त कभी,
किसी के लिए रुकता नहीं...
खुशियाँ,
तुझे ही तलाश करनी पड़ती हैं,
कोई हँसे , न हँसे ,
गर पल
वो चला जाये,
वापस आ सकता नहीं...
इश्क में तू,
जान देने की कोशिश न करना,
जान जाने का
वक़्त, तय तू करता नहीं...
जी, सब को ले संग,
जी भर के जी ले..
गम तो
छड भर का है,
तू कोई ग़मज़दा नहीं ...
मुश्किलों में,
लगा रह,
खुद के मदद खुद कर,
कायरों की
मदद,
खुदा भी करता नहीं ....
अपने गुनाहों का,
तू कर ले प्राश्चित,
पछताने से,
बाद में कुछ होता नहीं...
कर्म किये जा,
और फल की चिंता मत कर,
फल के पकने की
उम्र, तय तू करता नहीं..
जो गया,
सो गया, तू आगे की सोच,
जाने वाले को,
रोक कोई सकता नहीं....
और जो चला गया,
वापस आ सकता नहीं..
दीवार पर,
लगी हुई घड़ी,
हर पल
ये याद दिलाती है,
चल.. चला ..चल..
रुक तू सकता नहीं...

शैल - जुलाई ' 12

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